फेफड़ों का हमारे शरीर में बहुत ही एहम रोल है। क्योंकि जीवित रहने के लिए सांस लेना जरूरी है और सांस लेने के लिए स्वस्थ फेफड़े होना आवश्यक है।
फेफड़ों का मुख्य कार्य वातावरण से ऑक्सीजन लेकर उसे रक्त परिसंचरण मे प्रवाहित करना और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। प्लूरिसी में फेफड़े के पर्दे में पानी भर जाता है, फेफड़ो में सूजन हो जाती हैं, रोगी को ज्वर होता है, सांस रुक-रुक कर आता है, छाती में दर्द रहता है, आदि लक्षण होते है। आयुर्वेद में इसका उपचार बहुत सरल हैं। आइये जाने ये उपचार।
उपचार : इस बीमारी में तुलसी के ताजा पत्तों का स्वरस आधा ओंस (15 ग्राम) से एक ओंस (30 ग्राम) धीरे-धीरे बढ़ाते हए प्रात: सायं (सुबह और शाम) दिन में दो बार खाली पेट लेने से प्लूरिसी में शीघ्र आश्चर्यजनक रूप से लाभ होता है। इससे दो तीन दिन में बुखार नीचे उतरकर सामान्य हो जाता है और सप्ताह या अधिक आठ दस रोज में फेफड़े के पर्दे में भरा पानी सूख जाता है। किसी भी कारण से यह बीमारी क्यों न हो, बिना किसी अन्य दुष्प्रभाव के शत-प्रतिशत लाभ होता है और साथ ही फुस्फुस(फेफड़ो) और ह्रदय की अन्य बीमारियां और पेचीदगियां हो तो भी इससे ठीक हो जाती है।
Note : इस रोग में ठंडा और कफकारक आहार न लें बल्कि हल्का व सुपाच्य आहार लें।
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