चावल हमारे खानपान का अहम हिस्सा है। दुनिया की बड़ी आबादी की भूख आज भी चावल के जरिए ही मिटती है। लेकिन चावल सिर्फ हमारी भूख ही नहीं मिटाता, बल्कि यह आंतों के कैंसर से मुकाबला करने में भी सक्षम बनाता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में खाने की आदतों और वहां आंतों के कैंसर के मामलों की तुलना करके न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाले हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ केंटनबरी की प्रमुख शोधकर्ता प्रो. एन रिचर्डसन का कहना है कि न्यूजीलैंड में हर साल 2500 लोग आंत के कैंसर का शिकार होते हैं। पूरी दुनिया में ही आंतों के कैंसर के मामलों में इजाफा हो रहा है। इसके पीछे खान-पान की आदतों में आए बदलाव को जिम्मेदार माना जा रहा है। जापान और हांगकांग जैसे देशों में भी बीते पचास सालों के दौरान खान-पान की आदतों में बदलाव आए हैं।
इसके साथ ही यहां पर आंतों के कैंसर के मामले भी बढ़े हैं। जापान में प्रतिव्यक्ति चावलों की खपनत बीते बीस-तीस सालों में आधी रह गयी है। प्रो. रिचर्डसन बताती हैं कि चीन और भारत जैसे देशों में चावल की खपत में कोई फर्क नहीं आया है। इसलिए यहां आंतों के कैंसर संबंधी मामले कम देखने को मिलते हैं।
हमारे देश में चावल की पैदावार भी बहुत होती है और देश की बड़ी आबादी आज भी चावल का भरपूर इस्तेमाल करती है। देश के दक्षिणी राज्यों में तो चावल मुख्य भोजन के तौर पर ही पेश किया जाता है। वहीं बिहार और उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी चावल की खपत बड़ी मात्रा में होती है। हालांकि, उत्तर भारतीय राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश आदि में चावल के मुकाबले गेहूं का उपभोग अधिक होता है।
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