दस रुपए की कीमत वाला ये पौधा किडनी, शुगर और बवासीर जैसी बिमारियों में रामबाण है

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कासनी  एक भूमध्य क्षेत्र Mediterranean की जड़ी बूटी है। इसे इंग्लिश में चिकोरी / चिकरी Chicory कहा जाता है। इस पौधे की जड़ को यूरोप में कॉफ़ी के विकल्प substitute for coffee के रूप में प्रयोग किया जाता है और वहां पर इसकी खेती की जाती है। कासनी के पत्ते काहू के पत्तों जैसे होते हैं। इसमें चमकीले नीले रंग के फूल खिलते हैं और इसकी मंजरियाँ मुलायम होती हैं। इसकी दो प्रजातियाँ हैं, जंगली और उगाई जाने वाली। खेती की जाने वाली प्रजाति मीठी सी होती है जबकि जंगली प्रजाति कडवी होती है। जंगली के अपेक्षा उगाई प्रजाति के पौधे की पत्तियों को अधिक शीतल और तर माना गया है।

health-benefits-of kasni tree

किडनी, ब्लड शुगर लीवर और बवासीर जैसी बीमारियों में इस मेडिसन पौधे की पत्तियों का सेवन मरीजों के लिए रामबाण का काम कर रही है. आर्युवेदिक गुणों से भरपूर इन पौधे की मांग न केवल देश भर में है बल्कि विदेशों तक के डॉक्टर इन रोगों से ग्रसित मरीजों को कासनी के सेवन की सलाह दे रहे हैं.

हल्द्वानी वन एवं अनुसंधान केन्द्र की औषधीय पौधशाला में लगभग 25 प्रकार के आर्युवेदिक पौधों को तैयार किया जाता है.विलुप्त होने की कगार पर पहुंची कासनी के पौधों पर यहां पिछले दो साल से रिर्सच की गई और एक बड़ी नर्सरी तैयार की गई.

कासनी का सेवन पाचन में सहयोग करता है। भारत में कासनी, उत्तर-पश्चिमी भारत में 6000 फीट की ऊंचाई तक तथा बलूचिस्तान, पश्चिमी एशिया, और यूरोप में उगाई जाती है। कासनी की जड़ को मुख्यतः औषधीय रूप से प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग प्यास, किडनी, सिरदर्द, नेत्र रोग, गले की सूजन, लीवर के रोग, बुखार, उल्टी, लूज़ मोशन आदि में बहुत लाभदायक है। इसके सुखाये बीजों को ठंडाई में भी मिलाया जाता है।

कासनी की सामान्य जानकारी –

कासनी, उत्तर-पश्चिमी भारत में 1828.8 मीटर या 6,000 फुट की ऊंचाई तक तथा कुमायूं, उत्तर प्रदेश, देहरादून, पंजाब, कश्मीर, में पाया जाता है। पंजाब, कश्मीर, हैदराबाद, तथा देश के कई हिस्सों में इसकी खेती भी की जाती है।

उत्तम दर्जे के कासनी पंजाब और कश्मीर की मानी जाती है। औषधीय पौधा होने से, इसकी जड़, फूल, बीज पंसारियों के पास मिल जाते हैं।
कासनी का पौधा 30 cm से लेकर 120 cm या 1 फुट से 4 फुट तक ऊंचाई का बहुवर्षीय कोमल झाडी होता है। इसकी बहुत सी टहनियां होती हैं। तने के पास के पत्ते खंडित तथा दांतेदार होती है और ऊपर की पत्तियां छोटी और सरल धारदार होती हैं। फूल चमकीले नीले होते हैं।

• वानस्पतिक नाम: Cichorium intybus Linn. सिकोरियम इंटीबस
• कुल (Family): कंपोजिटी (Compositae) ऐस्टेरेसी (Asteraceae) मुण्डी कुल
• औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, पूरा पौधा, बीज, पंचांग
• पौधे का प्रकार: झाड़ी

औषधीय मात्रा

1. पत्तों का रस: 12-24 ml
2. जड़ का चूर्ण : 3-6 gram
3. बीजों का चूर्ण: 3-6 gram
कासनी के बीज, छोटे, सफ़ेद, वज़न में हल्के, स्वाद में तिक्त होते हैं। कासनी की जड़, गोपुच्छाकार, बाहर से हल्की भूरी और अन्दर से सफ़ेद होती है। इसका स्वाद फीका, कडवा और लुवाबी slimy होता है।
कासनी में औषधीय प्रभाव एक साल तक रहते हैं।

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कासनी के गुण और औषधीय प्रयोग

  • यह किडनी की अक्सीर दवा है. हजारों किडनी पीडि़त इस पौध की पत्ती चबाने से रोग मुक्त हो गये हैं. एक मरीज का क्यूरेटिन लेवल 10.8 था वह अब 4.8 हो गया है. उसी तरह से शुगर लेवल 500 था आज वह नार्मल इस संजीवनी से ठीक हो गया | इसके सेवन से एक ही नहीं अनेकों किडनी और शुगर के मरीजों को लाभ पहुंचा है.
  • कासनी में खनिज जैसे पोटेशियम, लोहा, कैल्शियम और फास्फोरस, विटामिन सी तथा अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं।
  • कासनी का प्रभाव शामक / निद्राजनक sedative होता है जो की इसमें पाए जाने वाले लैक्टुकोपिक्रीन lactucopicrin के कारण होता है।
  • इसमें इनुलिन होता है। कासनी को डायबिटीज में ब्लड सुगर लवेल को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • यह यकृत की रक्षा करता है और शराब के सेवन के कारण होने वाले लीवर के नुकसान से बचाता है।
  • यह खून को साफ़ करता है।
  • इसे एंग्जायटी और तंत्रिका संबंधी विकार के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • मूत्रल होने से यह पेशाब की मात्रा को बढ़ाता है और पेशाब रोगों, शरीर में सूजन आदि से राहत देता है।
  • यह पाचन को बढ़ाता है।
  • इसके पत्तों के लेप से जोड़ों का दर्द दूर होता है।
  • यह रक्तवर्धक है।
  • जड़ को पीस कर बिच्छू के काटे जगह पर लगाने से आराम मिलता है।

कासनी के बीज, यूनानी में दूसरे दर्जे के सर्द और खुश्क माने गए हैं। बीज भूख बढ़ाने वाले, कृमिनाशक, लीवर रोग, कमर के दर्द, सिरदर्द, दिल की धड़कन, जिगर की गर्मी, पीलिया, आदि को दूर करते हैं। बीज का सेवन दिमाग को ताकत देता हैं।

बीजों का सेवन दमा, खांसी में ननुकसान करता है।

इस वेबसाइट में जो भी जानकारिया दी जा रही हैं, वो हमारे घरों में सदियों से अपनाये जाने वाले घरेल नुस्खे हैं जो हमारी दादी नानी या बड़े बुज़ुर्ग अक्सर ही इस्तेमाल किया करते थे, आज कल हम भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में इन सब को भूल गए हैं और छोटी मोटी बीमारी के लिए बिना डॉक्टर की सलाह से तुरंत गोली खा कर अपने शरीर को खराब कर देते हैं। तो ये वेबसाइट बस उसी भूले बिसरे ज्ञान को आगे बढ़ाने के लक्षय से बनाई गयी है। आप कोई भी उपचार करने से पहले अपने डॉक्टर से या वैद से परामर्श ज़रूर कर ले। यहाँ पर हम दवाएं नहीं बता रहे, हम सिर्फ घरेलु नुस्खे बता रहे हैं। कई बार एक ही घरेलु नुस्खा दो व्यक्तियों के लिए अलग अलग परिणाम देता हैं। इसलिए अपनी प्रकृति को जानते हुए उसके बाद ही कोई प्रयोग करे। इसके लिए आप अपने वैद से या डॉक्टर से संपर्क ज़रूर करे।

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