वागभट्ट जी के 5 सूत्र जो आपको कभी बीमार नही होने देंगे : प्राचीन भारतीय चिकित्सा-विज्ञान अथवा आयुर्वेद चिकित्सा-जगत मे महान आचार्य आत्रेय, सुत्रुत और वाग्भट ‘व्रध्द्त्रय’ के नाम से विख्यात है। इनके ग्रंथ आज भी आयुर्वेद के छात्रो को पडाया जाता है। वाग्भट जी का प्राचीन भारत के चिकित्सा जगत मे सम्मान और महत्व था।
वाग्भट का जन्म सिंधु नदी के तटवर्ती किसी जनपद मे हुआ था. वाग्भट जी ने आयुर्वेद के दो महत्वपूर्ण ग्रंथो अष्टांग संग्रह और अष्टांग ह्रदया सहीनता की रचना की, उनके ये ग्रंथ आज भी बड़े उपयोगी है और वैद लोग आज भी उनका सम्मान करते है। ये दोनो ग्रंथ प्राचीन काल के दो प्रमुख चिकित्सा-पद्धतियो के आधार थे।
अपने इस ग्रंथ मे ‘अष्टांग हृद्या संहिता’ के प्रथम भाग मे वाग्भट ने प्राचीन आयुर्वेदिक औषधिया, विधार्थियो के लिए आवश्यक निर्देश, दैनिक और मौसमी निरीक्षण, रोगो की उत्पति और उपचार, व्यक्तिगत सफाई, औषधि और उनके विभाग तथा उनके लाभ आदि का वर्णन किया है।
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इस ग्रंथ के दूसरे भाग मे उन्होने मानव शरीर की रचना, शरीर के प्रमुख अंगो, मनुष्य स्वभाव, मनुष्य के विभिन्न रूप और उनके आचार्नो की व्याख्या की है।
इसके तीसरे भाग मे उन्होने ज्वर, मिर्गी, उल्टी, दमा, चर्म रोग आदि बीमारियो के कारण और उपचार, चौथे भाग मे वमन और स्वच्छता के विषय मे, पाँचवे और अंतिम भाग मे बच्चो और उनसे संबंधित रोगो, साथ ही पागलपन, आँख, कान, नाक, मुख आदि के रोग और घाव आदि के उपचार, विभिन्न जानवरो और किडो के काटने के उपचार का वर्णन किया है।
साथ ही वाग्भट जी ने इस पुस्तक मे आपने पूर्ववर्ती चिकित्सको के विषय मे भी प्रकाश डाला है। इस प्रकार यह ग्रंथ आयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह ग्रंथ इस बात को सिद्ध करता है कि मध्य युग मे भारत का आयुर्विज्ञान उन्नत था और वाग्भट भारत के महान चिकित्सक थे।
वागभट्ट जी के 5 सूत्र जो आपको कभी बीमार नही होने देंगे
पहला सूत्र – जिस भोजन को पकाते समय सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श न मिले ऐसा भोजन कभी न खाएं अगर आज की भाषा में कहें तो प्रेशर कुकर का भोजन न खाना, माइक्रोवेव ओवन का भोजन न खाना और रेफरीजरेटर में रखा हुवा भोजन न खाएं
दूसरा सूत्र – भोजन बनने या पकने के 48 मिनट तक भोजन खा लेना चाहिए क्यूंकि 48 मिनट के बाद लगातार उसके न्यूट्रीयंट्स कम होने लगते हैं 2 गनते बाद आधे न्यूट्रीयंट्स रह जायेंगे और 24 गनते बाद भोजन में कोई न्यूट्रीयंट्स नही बचता
तीसरा सूत्र – तीसरा सूत्र यह है कि गेंहू का आटा जो खाए वो 15 दिन से अधिक समय का पिस्सा हुवा नही होना चाहिए और जई, मक्का, बाजरा का आटा 7 दिन से अधिक समय का पिस्सा हुवा नही होना चाहिए क्यूंकि उसके बाद इनके न्यूट्रीयंट्स ख़त्म होने शुरू हो जाते हैं हर 15 दिन के बाद नया आटा ले आयें या पिस लें या फिर इतन ही आता पिसवाएं जितना की 15 दिन में ख़त्म हो जाए
चौथा सूत्र – चोथे सूत्र के अनुसार आप अपने शारीरिक श्रम को कम मत कीजिये जब तक आप 60 साल के न हो जाएँ, उन्होंने व्यक्ति के जीवन की 3 केटेगरी बनाई हैं पहली 18 साल तक और उससे कम उम्र के बच्चे दूसरी 18 से 60 साल तक और तीसरी 60 की उम्र से उपर के व्यक्ति, और 60 साल की उम्र के बाद शारीरिक श्रम कम होता जाना चाहिए और 18 से ज्यदा की उम्र के लोग अपने श्रम को बढाता जायें जैसे 19 की उम्र में 18 की उम्र से अधिक श्रम करें और 20 की उम्र में 19 की उम्र से अधिक श्रम करें और 18 साल से कम के लोगों के लिए उन्होंने खा की उनके शरीर को अधिक श्रम करने की जरुरत खेलने के रूप में है आप उनको ज्यादा खेलने दीजिये और 18 से 60 की उम्र में ऐसा श्रम जिसमे उत्पादन हो माने कुछ फायदा हो जैसे चक्की चलाई तो आता मिला और 60 के बाद इस श्रम को कम करते जाएँ
पांचवा सूत्र – आप अपने जीवन में तासीर का ध्यान रखिये आबो हवा का ध्यान रखिये वातावरण का ध्यान रखिये जहां आप रह रहे हैं भारत एक गरम देश है और कनाडा और अमेरिका ठन्डे देश हैं भारत एक गर्म देश है इसलिए यहाँ वात की प्रॉब्लम सबसे अधिक रहती है पित्त और कफ हमेशा आपका कम रहेगा इसलिए भारत के लोगों को वाट के रोग सबसे अधिक हैं भारत के लोगों को 70% रोग वात के ही हैं 12 से 13 रोग पित्त के हैं और 10% रोग कफ के हैं तो ध्यान रहे कि ऐसे काम मत कीजिये जिससे वात बढे. जैसे आप दौड़ लगाते हैं तो हमारे यहाँ दौड़ना नही है क्योंकि दौड़ने से शरीर की गर्मी बढेगी और वात बढेगा तो घुटने बहुत जल्दी आपके थकेंगे और जितने भी भारत के रनर है उनके 35 साल की उम्र के बाद घुटने बिलकुल ख़त्म हो जाते हैं जैसे मिल्खा सिंह का कहना है कि उस समय तो वो दौड़ लिए लेकिन आज पता चलता है की दौड़ना नही था उनके दोनों नी जॉइंट्स परमानेंट डैमेज हो गये हैं तो भारत दौड़ने वाला देश नही है सिर्फ चलना है इसलिए वागभट्ट जी कहते हैं कि भारत एक गर्म देश है ऐसा कोई काम न करें जिससे वात बढेगा और युरोपे जैसे देश ठन्डे हैं वहां कफ ज्यादा जल्दी बढता हैं इसलिए वहां के लोग ऐसा कोई काम न करें जिससे कफ बढे इसलिए वागभट्ट जी कहते हैं कि तासीर का ध्यान रखें पित्त जो है सम ही रहता है. अगर इन सूत्रों का जीवन में पालन करेंगे तो आपको कोई रोग आ ही नहीं सकता
Source:www.rajivdixitji.com
vagbhat ji ke btaae sutr bhut hi ache hain